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शेरनी, जैसा कि हम जानते हैं, एक भयंकर, अभिमानी प्राणी है, और छोटे जानवरों को हमेशा दबाने की प्रवृत्ति रखती है। एक बार एक शेरनी जंगल में भाग रही थी, और तभी उसके पंजे में एक कांटा चुभ गया। क्योंकि शेरनी काफी अभिमानी थी तो उसने किसी से मदद न मांगने का फैसला किया। खून बहता जा रहा था, वह कमजोर हो रही थी।

हम पांच आपके पास आ रहे थे, कि मार्ग में दूसरा सिंह अपनी गुफा से निकलकर आया और बोला- अरे किधर जा रहे हो तुम सब, अपने देवता को याद कर लो, मै तुम्हे खाने आया हु.

शिक्षा- जब हमे कोई चीज नही मिलती हैं, तो हम उसकी बुराई बताकर मन को दिलासा देते हैं.

उसे सोच में बैठा देख राधे गुप्त ने कारण पूछा. रामास्वामी ने बताया, ”आपने परीक्षा की शर्त के रूप में कहा था कि चोरी करते समय कोई देख न सके.

अपने वतन की मर्यादा रखने के लिए उनके उस ज्ञान मन्त्र को खरीदने की तम्मना जताई.

उमा ने ध्यान दिया तो उस डाल पर एक सुंदर घास का घौसला बन रहा था. उसे बड़ी जिज्ञासा हुई तथा अपनी माँ से पूछने लगी, माँ यह चिड़िया पेड़ पर कितना सुंदर घौसला बना रही हैं जबकि हमारे घर में तो वह ऐसा नही बनाती हैं.

समुद्र के किनारे एक ऊँचा पर्वत था. उस पर्वत तलहटी में एक साफ़ स्थान को चुनकर कुरज ब्याई और सत्रह अंडे लाई.

सेठ लड़के की आवाज सुनकर घबरा गया उसने तुरंत लड़के को जगाया और पूछा क्या बात हैं अभी क्या कह रहा था तू?

वे बोले भूमि का निर्णय हो जाए फिर आपकों डटकर खाना खिलाएगे.

में तो किसी तरह से उससे जान छुड़ाकर आपके पास आया हु, महाराज !

वहां मिष्ठान के भरे थाल पहुचा दिए गये. प्रजापति दानवों के कमरे में गये.

हर समस्याएं अलग होती हैं और उनका समाधान भी अलग होता है। किसी भी मुसीबत का सामना करने के लिए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल सही तरीके से करना चाहिए।

उसने सोचा यह कुछ ही मिनट का काम है वह तिनकों को लेकर पेड़ की डाल पर चढ़ी और उन पर रखती गयी मगर जैसे जैसे वह तिनका रखती वह नीचे गिरती रही.

उन अन्डो को कुरज ने पुरे सत्रह दिन तक सेया. उस कुरज ने उन सत्रह दिनों तक एक भी दाने का चुग्गा नही लिया.

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